कार्बेट टाइगर रिजर्व के वन गुर्जरों का जगल और जानवरों के बीच हुजर रहा जीवन

बियावान जंगल में हिसंक जानवरों के बीच जीवन यापन करने वाले वन गुर्जरों की सुध न तो कार्बेट पार्क के अधिकारियों ने ली और न जनप्रतिनिधियों ने। कार्बेट के ढेला और झिरना रेंज के जंगलो में रहने वाले वन गुर्जरों के 122 परिवार सरकार से विस्थापन की गुहार करते-करते थक गए हैं, मगर उनकी आवाज सुनने वाला कोई नहीं है।

उनकी दुश्वारियों का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि घनघोर जंगल के बीच से अपने बच्चों को छोड़कर लगभग 16 किमी दूर पैदल ढेला गांव जाकर इस उम्मीद से अपना नेता चुनते हैं कि वह उनकी दिक्कतों को दूर करेगा। मगर हर बार उनके हाथ सिर्फ निराशा ही लगी है।

स्वीडन के राजा-रानी ने समझा था दर्द

सात दिसंबर 2019 को स्वीडन के 16वें राजा कार्ल गुस्ताफ और रानी सिल्विया ने वन गुर्जरों के आवास पर जाकर उनका जीवट भरा जीवन देखा और भारत सरकार से बात करने का भरोसा दिलाया था। मगर अपनी सरकार के नुमाइंदे वन गुर्जरों के दर्द को नहीं समझ रहे हैं।

2018 में जबरन हटाने की हुई थी कोशिश

वन गुर्जर नबाबुदीन बताते है कि 2018 में उन्हें अनाधिकृत रूप से हटाए जाने की कोशिश हुई थी। जिस कारण उन्हें उच्चतम न्यायालय की शरण लेनी पड़ी। तब स्टे मिला था और कहा गया था कि जब तक विस्थापन नहीं किया जाता, तब तक इन लोगों को परेशान न किया जाए।

2002 में बनी थी सूची

जब विस्थापन के लिये 2002 में सूची बनी थी, उसमें सोना नदी क्षेत्र, झिरना और ढेला रेंज के सारे वन गुर्जर शामिल थे। फिर सोना नदी क्षेत्र के गुर्जरों को बसा दिया गया और झिरना व ढेला रेंज के गुर्जरो को बफर जोन के नाम पर सूची से अलग कर दिया गया। तब ढेला और झिरना रेंज में 57 परिवार थे, जो आज बढ़कर 122 हो गए हैं।

गाइडलाइन के अनुसार कोई धनराशि देय नहीं

राहुल, निदेशक कार्बेट नेशनल पार्क ने बताया कि ढेला और झिरना क्षेत्र में रहने वाले वन गुर्जर कार्बेट टाइगर रिजर्व के बफर क्षेत्र में है। इसलिये एनटीसीए की गाइडलाइन के अनुसार उन्हें कोई धनराशि देय नहीं है। हालांकि, धनराशि देने को लेकर उच्चस्तर से प्रस्ताव भेजा गया है। जिसके अनुमोदित होने पर ही आगे कार्यवाही होगी।

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