एक संतान के चलन से खत्म होते जा रहे खून के रिश्ते

वर्तमान समय में दो या दो से कम बच्चों का चलन तेजी से बढ़ा है। इस चलन से जनसंख्या वृद्धि दर भले ही नियंत्रित हुई हो, लेकिन इसका एक पहलू ये भी है कि इससे कई सामाजिक रिश्ते और वंश खत्म हो रहे हैं। इंटरनेट मीडिया पर इन दिनों तेजी से प्रसारित हो रहे एक मैसेज ने लोगों के बीच इस विषय पर बहस छोड़ दी है। समाज में हो रहे इस बदलाव से सभी चिंतित हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि एक बच्चा होने से आने वाले 30-35 सालों में कई रिश्ते खत्म होने की कगार पर पहुंच जाएंगे। इसमें चाचा, ताऊ, बुआ, मामा, मौसी शामिल है। वर्तमान समय में ऐसे कई बच्चे हैं, जिनके पास ये रिश्ते नहीं हैं। इस संबंध में समाजशास्त्री अक्षय दिवाकर कहते हैं कि 2011 की जनगणना के मुताबिक हो या दो से कम बच्चों वाली माताओं की संख्या 54 फीसद थी 2001 में यह 46.6 फीसद थी।

लगभग आठ फीसद संख्या बढ़ी है। अब जनगणना होगी तो निश्चित रूप् से ये आंकड़ा दस फीसदी बढ़ चुका होगा, क्योंकि शिक्षित लोगों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। वे कहते हैं कि जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए एक बच्चे का निर्णय सही है, लेकिन सामाजिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो भविष्य में इसके परिणाम गंभीर होंगे। व्यस्त माता-पिता बच्चों को भाई-बहन तो नहीं दे सकते, इसलिए फोन पकड़ा देते हैं, जो गलत असर डालता है। ऐसे में बच्चों में आत्महत्या के मामले भी बढ़े हैं। इसके साथ ही ये बच्चे जब बउ़े होते हैं और जिंदगी के संघर्षों से रूबरू होते हैं, तो उनके पास कोई खून का रिश्ता नहीं होता, जो उन्हें सहारा दे सकें।

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