गांव के प्राइमरी से आईएएस तक का सफर

गांव के प्राइमरी से आईएएस तक का सफर
बच्चे बड़े हुए तो उनका नाम स्कूल में लिखवा दिया। अंजली और रोहित दोनों की शुरुआती पढ़ाई गांव के स्कूल में हुई। प्राइमरी के बाद रोहित को आठवीं तक पढऩे के लिए घर से तीन किमी दूर कुम्हऊपुर के जूनियर स्कूल जाना होता है। कांती बताती हैं कि रोहित शुरू से पढऩे में तेज था। वह अपने काम के साथ-साथ बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और दूसरी जरूरतों का ध्यान तो रखती थी, लेकिन उन्हें समय नहीं दे पाती थी। 8वीं के बाद रोहित ने 12वीं की पढ़ाई कानपुर देहात के उमरी गांव के इंटर कांलेज से की। इसके बाद आईआईटी की तैयारी करनी शुरू कर दी। वहां भी वह पास होता चला गया। अप्रैल 2019 में रोहित ने यूपीएससी में 469वीं रैंक हासिल की तो लगा कि उनकी तपस्या पूरी हो गई। रोहित आज राजकोट (गुजरात) में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
टीकाकरण को लेकर लगाती हैं गांव-गांव चक्कर
कांती पाल ने अपनी मेहनत न सिर्फ अपने परिवार को संवारा बल्कि अपने काम से आसपास के गांवों की प्रसूताओं की उम्मीद बन गई। कांती बताती हैं कि उनके सब सेंटर में प्रतिमाह 15 से लेकर 20 गर्भवतियों के सामान्य प्रसव हो जाते हैं। वह स्वयं टीकाकरण के लिए गांव-गांव भ्रमण करती है। कोविड टीकाकरण भी पूरी जिम्मेदारी के साथ किया। महिलाओं को नियमित तौर पर स्वास्थ्य की जांच कराने को भी प्रेरित करती हैं। बेटे के आईएएस बनने के बाद कांती ने गांव में मंदिर बनाने की मन्नत मानी थी, जिसे वो निभा चुकी हैं। आज गांव के लोग कांती पाल के संघर्षों को याद कर उन पर गर्व महसूस करते हैं।
कांतीपाल के संघर्ष को सैल्यूट
सीएमओ डा. एके रावत ने कहा कि विपरीत परिस्थितियों में अपने घर परिवार को संभालने और ड्यूटी के प्रति कत्र्तव्यनिष्ठा कांतीपाल किसी भी महिला के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। विभाग उनके संघर्ष और काम के प्रति ईमानदारी की सराहना करता है। सुमेरपुर के एमओआईसी डा. महेशचंद्रा और जिला स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी अनिल कुमार यादव ने भी कांतीपाल के अपने कार्य के प्रति गंभीरता और परिवार के प्रति निभाई गई जिम्मेदारी की सराहना की।

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