भारत दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, ग्लोबल आईटी इंडस्ट्री बना मुख्य केन्द्र

आजादी के बाद भारत के सामने चुनौतियां तो अनेक आईं लेकिन उन्हें पीछे छोड़ते हुए इसने दुनिया में अपना जो श्रेष्ठ स्थान बनाया है, उसकी मिसाल कम ही मिलती है। देश आजाद हुआ तब देशवासियों के सामने खाने-पीने-पहनने का संकट था, क्योंकि तब हम इन सबके लिए आयात पर निर्भर थे। लेकिन 75 वर्षों के बाद आज हम दुनिया की जरूरतें पूरी कर रहे हैं। साढ़े सात दशक में देश ने कई युद्ध लड़े, मंदी का साया कई बार गहराया, लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था अटल रही।

 आज भी जब अमेरिका और यूरोप के फिर मंदी में जाने की चर्चा हो रही है, दुनिया के तमाम एक्सपर्ट यही कह रहे हैं कि भारत सबसे तेज बढऩे वाली इकोनॉमी रहेगा। अंग्रेजी शासन से तुलना करें तो आजादी से पहले 50 वर्षों तक भारत की औसत विकास दर सिर्फ 0.75 प्रतिशत थी।
देश की कुछ उपलब्धियां देखिए। एग्रीकल्चर स्टैटिस्टिक्स एट ए ग्लांस के अनुसार 1950-51 से 2020-21 तक प्रति व्यक्ति आय 7114 रुपये से (स्थिर मूल्यों पर) 12 गुना बढ़कर 85110 रुपये हो गई। अनाज उत्पादन 508 लाख टन से छह गुना बढ़कर 3086 लाख टन पहुंच गया। तब बिजली उत्पादन 5 अरब किलोवाट का होता था, यह 275 गुना बढ़कर 1373 किलोवाट हो गया है। निर्यात में 3562 गुना की वृद्धि हुई है। 1950-51 में सिर्फ 608 करोड़ रुपये का निर्यात हुआ था, जबकि 2020-21 में 29.16 लाख करोड़ रुपये का निर्यात हुआ है। इस दौरान देश की आबादी भी 36 करोड़ से बढ़कर 140 करोड़ हुई है।
भारत नॉमिनल जीडीपी के हिसाब से दुनिया की छठी और परचेजिंग पावर पैरिटी के हिसाब से तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी है। यहां का 47 लाख करोड़ रुपये का रिटेल मार्केट दुनिया में पांचवां सबसे बड़ा है। कारों की बिक्री के मामले में चीन, अमेरिका और जापान के बाद भारत चौथे नंबर पर है। हम दुनिया के छठे सबसे बड़े मैन्युफैक्चर भी हैं। हम न सिर्फ दुनिया के सबसे बड़े जेनेरिक ड्रग उत्पादक हैं, बल्कि सबसे बड़े वैक्सीन निर्माता भी हैं। इसलिए भारत को दुनिया की फार्मेसी भी कहा जाता है। यूजर संख्या के लिहाज से यहां की टेलीकॉम इंडस्ट्री दुनिया में दूसरे नंबर पर पहुंच गई है। इंजीनियरिंग, जेम्स एंड ज्वैलरी, पेट्रोलियम, गारमेंट, आईटी जैसे सेक्टर में भारत बड़ा निर्यातक भी बन गया है। भारत ग्लोबल आईटी इंडस्ट्री का आधार तो है ही, आज देश में 100 से ज्यादा यूनिकॉर्न हैं और इस मामले में यह तीसरे नंबर पर है।
भारतीय अर्थव्यवस्था का अतीत भी स्वर्णिम रहा है। वर्ष 1700 के आसपास विश्व अर्थव्यवस्था में भारत का हिस्सा एक चौथाई था और यह समूचे यूरोप के बराबर था। ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग में भी भारत लगभग इतना ही योगदान करता था। लेकिन ब्रिटिश शासन के दौरान उद्योग बंद होने से वर्ष 1900 में भारत का औद्योगिक उत्पादन दुनिया का सिर्फ दो फीसदी रह गया। आजादी के समय दुनिया की जीडीपी में भारत का हिस्सा सिर्फ चार फीसदी था। हालांकि अब भी यह 3.2त्न है, लेकिन अब विश्व अर्थव्यवस्था काफ ी बड़ी हो गई है। आर्थिक सुधारों से पहले 1991 में वह समय भी आया जब भारत की इकोनॉमी 17वें स्थान पर पहुंच गई थी। तब विदेशी मुद्रा भंडार सिर्फ 5.8 अरब डॉलर का रह गया था, अब 573 अरब डॉलर का है।
भारत की विकास दर 1950 के दशक में ही आजादी से पहले की तुलना में पांच गुना हो गई थी। इसका एक कारण यह था कि पहले हमारे देश की बचत बाहर चली जाती थी और यहां निवेश नहीं हो पाता था। आजादी के बाद देश में ही निवेश होने लगा। संसाधन कम थे, सो उनका बेहतर इस्तेमाल करना जरूरी था। इसलिए योजना आयोग बना, उद्योग और कृषि नीति बनी।

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