हिन्दी राष्ट्रभाषा ही नहीं हिन्दुस्तानियों की पहचान भी: डॉ योगेन्द्र सिंह

 हिन्दी भाषा को देवनागरी लिपि में भारत की कार्यकारी और राजभाषा का दर्जा आधिकारिक रूप में दिया गया। भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय की धारा 343 (1) में हिन्दी को संघ की राजभाषा का दर्जा प्राप्त है। हिन्दी पूरी दुनिया में सबसे अधिक बोली जाने वाली मूल भाषा है। हिन्दी हिन्दुस्तान की राष्ट्रभाषा ही नहीं बल्कि हिन्दुस्तानियों की पहचान भी है।

प्रयागराज (आरएनएस )

यह बातें मुख्य अतिथि इलाहाबाद विश्वविद्यालय, हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ योगेन्द्र प्रताप सिंह ने रज्जू भैया शिक्षा प्रसार समिति द्वारा संचालित सिविल लाइंस स्थित ज्वाला देवी इंटर कॉलेज में हिन्दी दिवस के अवसर पर सम्बोधित करते हुए कहा। उन्होंने बताया कि 2001 में 41.03 प्रतिशत मातृभाषा हिन्दी बोलने वाले लोग थे, वहीं 2011 में यह प्रतिशत बढ़ कर 43.63 हो गया। भारत में 1949 से हर वर्ष 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है। आज के आधुनिक युग में हमें अंग्रेजी भाषा भी सीखना जरूरी है, लेकिन हमें अपनी मातृभाषा हिन्दी को कभी नहीं भूलना चाहिए।
विद्यालय के प्रधानाचार्य एवं प्रदेश निरीक्षक रामजी सिंह ने कहा कि हिन्दी भाषा हिन्दुस्तान की जननी है, इस भाषा को भारतवर्ष के निवासी मातृभाषा का दर्जा देते हैं। इस दृष्टि से इसका उत्थान करना हमारा मुख्य कर्तव्य होना चाहिये। उन्होंने कहा कि हिन्दी भाषा हमारे राष्ट्र का गौरव है। हिन्दी विषय के आचार्य सरोज कुमार द्विवेदी ने कहा कि हिन्दी अपने राष्ट्र की अभिव्यक्ति का सरलतम स्रोत है। अतः राष्ट्र एवं समाज की उन्नति के लिये हमें हिन्दी भाषा के विकास के लिये निरन्तर प्रयास करना चाहिये। पूरे विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं मे से हिन्दी चौथी है।
हरेकृष्ण त्रिपाठी ने कहा कि भारतेन्दु ने कहा था कि हिन्दुस्तान का विकास तभी सम्भव है, जब उसकी राज्य भाषा हिन्दी का विकास होगा। जिन महापुरुषों ने हिन्दी भाषा के विकास एवं प्रचार-प्रसार में अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया ऐसे महापुरुष पं. मदन मोहन मालवीय, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त, महावीर प्रसाद द्विवेदी आदि महापुरुषों को हमें कभी नहीं भूलना चाहिए। संचालन हिन्दी के आचार्य ब्रह्मनारायण तिवारी ने एवं आभार ज्ञापन आचार्य सरोज ने किया। इस अवसर पर हिन्दी विषय के आचार्य सन्तोष दुबे, रामानन्द वैश्य, गणेश द्विवेदी, पवन सिंह सहित अन्य आचार्य उपस्थित रहे।

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