नशे का नश्तर

नशे का नश्तर
देश के विभिन्न हिस्सों में नशीले पदार्थों की बरामदगी में तेजी आना हमारी गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए। सबसे बड़ी चिंता यह है कि नशे की अंतर्राष्ट्रीय तस्करी में सूचना व तकनीक के आधुनिक तौर-तरीकों का सहारा लिया जा रहा है, जिसके चलते यह जांच एजेंसियों की पकड़ में आसानी से नहीं आ पाती। इतना ही नहीं, कोरोना संकट के काल में बड़ी मात्रा में नशीले पदार्थों का कारोबार कुख्यात इंटरनेट प्लेटफॉर्म डार्कनेट और समुद्री मार्ग के जरिये बढ़ा है। इसके लिये कूरियर सेवाओं के जरिये भी नशीले पदार्थों की आपूर्ति की जाती रही है। देश में हेरोइन की बरामदगी तीन गुना से अधिक हो गई है। जहां वर्ष 2017 में 2,146 किलोग्राम हेरोइन बरामद हुई थी, वहीं वर्ष 2021 में इसकी मात्रा 7,282 किलोग्राम तक जा पहुंची। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो यानी एनसीबी का दावा है कि

प्रभावी कार्रवाई के चलते नशीले पदार्थों की बरामदगी में तेजी आई है। हालांकि नशे के तस्कर कार्रवाई करने वाली एजेंसियों से बचने के लिये लगातार तस्करी के तौर-तरीके बदलते रहते हैं। इंटरनेट में काले धंधों के बदनाम इंटरनेट प्लेटफॉर्म डार्कनेट के जरिये नशे की तस्करी दुनियाभर के देशों के लिये चिंता बढ़ाने वाली है। विशेष सॉफ्टवेयरों का उपयोग करने वाले तस्करों तक पहुंच बनाना सहज नहीं हो पाता, जो जांच अधिकारियों के लिये एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। बताया जाता है कि डार्कनेट बाजार में नब्बे प्रतिशत बिक्री कथित तौर पर नशीले पदार्थों से संबंधित है। तस्कर आधुनिक तकनीकों का सहारा लेकर कानून-व्यवस्था की आंख में धूल झोंकने में कामयाब हो जाते हैं। ऐसे में सरकारी एजेंसियों को साइबर मोर्चे पर इस खेल पर अंकुश लगाने के लिये उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल करना होगा, क्योंकि आने वाले समय में इस चुनौती में विस्तार ही होगा। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बेहद ताकतवर माफियाओं को कुछ सरकारों की मदद इस समस्या को जटिल बनाने का ही काम करती है, जो साझा अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों से ही दूर की जा सकती है।


हाल ही के दिनों पंजाब व जम्मू कश्मीर में नशीले पदार्थों की तस्करी में परंपरागत तौर-तरीकों के साथ ही आधुनिक तकनीक का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। बीएसएफ द्वारा बड़ी मात्रा में हेरोइन की बरामदगी इन आशंकाओं की पुष्टि करती है। अटारी-वाघा सीमा पर 532 किलोग्राम हेरोइन बरामद होने के दो साल बाद दिसंबर, 2021 में गुजरात तट पर एक पाकिस्तानी नाव से 77 किलोग्राम हेरोइन की जब्ती को सुरक्षा खतरे के मद्देनजर नार्को आतंकवाद पर गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है। सीमा पर सख्ती के चलते आतंकवादियों को हथियार व गोला-बारूद जुटाने में मदद के लिये नशे की खेपों का इस्तेमाल किया जा रहा है। यहां तक कि बड़े पैमाने पर ड्रोनों का इस्तेमाल भारतीय क्षेत्रों में नशे की खेप पहुंचाने के लिये किया जा रहा है। पिछले साल सितंबर में गुजरात के कच्छ इलाके में मुन्दरा बंदरगाह पर करीब 3000 किलोग्राम हेरोइन की बरामदगी ने देश को चौंकाया था, जो बताता है कि नशे की तस्करी के लिये समुद्री मार्गों का भी लगातार इस्तेमाल हो रहा है। भारत को यह शिपमेंट अफगानिस्तान से ईरान के रास्ते भेजा गया, जो यह बताता है कि नई पीढ़ी को पथभ्रष्ट करने के लिये किस तरह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर साजिशें हो रही हैं। यह सुनियोजित अंतर्राष्ट्रीय ड्रग सिंडिकेट की भागीदारी की ओर इशारा करता है।

इस बड़ी साजिश की व्यापक जांच की जरूरत है ताकि नशे के कारोबार की बड़ी मछलियों पर नकेल कसी जा सके। एशिया ही नहीं, पूरी दुनिया में नशीले पदार्थों की आपूर्ति अफगानिस्तान से की जाती रही है। इसमें तालिबान के सत्ता में काबिज होने के बाद इजाफा बताया जा रहा है। दरअसल, आर्थिक संकट से जूझते अफगानिस्तान में नशीले पदार्थ आय का बड़ा जरिया बनते जा रहे हैं; जिसको लेकर पूरी दुनिया चिंतित है। इसी कारण अभी तक दुनिया के किसी देश ने अफगानिस्तान को मान्यता नहीं दी है। एनसीबी के अनुसार पिछले पांच वर्षों में भांग की बरामदगी भी दोगुनी हो गई है। लेकिन वक्त की प्राथमिकता सिंथेटिक नशीले पदार्थों पर अंकुश लगाने की है।

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